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लघुकथाएँ - देश -ओमप्रकाश कश्यप
जहरीले बीज

‘‘मुसलमान बहुत कट्टर होते हैं। इन पर कभी भरोसा मत करना। इस देश में रहकर भी ये लोग पाकिस्तान के गुण गाते हैं। गद्दार हैं, सबके–सब साले।’’
‘‘क्या तुम ये बातें कादिर को लेकर कह रहे हो ;जो तुम्हारे पड़ोस में रहता है।’’
‘‘अरे नहीं, वो तो ऐसा नहीं है। उसके साथ तो हमारा रात–दिन का उठना–बैठना है।’’
‘‘लगता है तुम्हारा इशारा रमजानी की ओर है, जिसकी गली के नुक्कड़ पर नाई की दुकान है।’’
‘‘नहीं भाई! उसके बारे में भी ऐसा कहना मुश्किल है। मुझे तो वह सीधा–सादा आदमी लगता है। आते–जाते रोज बंदगी करता है ।अपनी मेहनत का खाता है।’’
‘‘अच्छा, सुलेमान के बारे में तुम्हारा क्या ख़याल है, वह तो पूरा मज़हबी ठहरा।’’
‘‘हुआ करे, उससे हमें क्या लेना। मैंने तो उसके जैसा जरूरत के समय दूसरों की मदद करने वाला और पाक–साफ आदमी आज तक नहीं देखा। बिजनिस में पाई–पाई का हिसाब रखना कोई उससे सीखे।’’
‘‘अच्छा, सच–सच बताओ। क्या तुमने कभी किसी गद्दार, खतरनाक या पाकिस्तानपरस्त मुसलमान को देखा है?’’
‘‘मेरा वास्ता तो ऐसे मुसलमान से कभी नहीं पड़ा; मगर इस देश में गद्दार मुसलमान हर जगह मौजूद है।’’
‘‘यह तुम कैसे कह सकते हो?’’
‘‘मैं.....मैं मैंने तो केवल सुना है।’’ इस बार शब्द बड़ी मुश्किल से बाहर आए। इसी के साथ उन महाशय की गर्दन झुकती चली गई।
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