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लघुकथाएँ - देश -रोहित यादव
फ़नकार

बस की प्रतीक्षा में स्त्री–पुरुष बस स्टैंड पर खड़े थे। कुछ मनचले युवक बार–बार वहाँ खड़ी एक नवयौवना की तरफ देख रहे थे, क्योंकि उसका वक्षस्थल ब्लाउज से बाहर साफ दिखाई दे रहा था।इसी कारण वह आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी।
इन युवकों की इस हरकत को देखकर एक सज्जन नवयौवना के पास आया और उसके ब्लाउज की तरफ इशारा करके कुछ कहना चाहा। पर वह कुछ कह पाता इससे पहले ही एक भरपूर तमाचा उस नवयौवना ने उसके गाल पर जड़ दिया। साथ में भद्दी गालियों की बौछार भी सुनने को मिली–‘‘बदमाश...गुंडा....लफंगा, क्या तेरे घर में बहन–बेटी नहीं हैं?’’
बस फिर क्या था, देखते ही देखते उन मनचले युवकों की मार ने उसे दोहरा कर दिया। बाकायदा पुलिस को तभी फोन किया गया। पुलिस आई और उसे लड़की छेड़ने के आरोप में गिरफ्तार करके ले गयी।
पुलिस जीप में वह अब भी लुटा–पिटा बैठा उस नवयौवना के बारे में ही सोच रहा था कि वह ब्लाउज व्यवस्था का दोष था या किसी सिलाई–कटाई के मास्टर की गलती थी; क्योंकि वह सिलाई–कटाई का एक बहुत बड़ा फ़नकार था।
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