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लघुकथाएँ - देश -उर्मिल कुमार थपलियाल
गेट मीटिंग

हमेशा की तरह की गेटमीटिंग थी। बैठे हुए मजदूरों के चेहरे पर एक औपचारिकता थी। शिथिल, क्लांत और बासी–तिबासी। आज बाहर से यूनियन के एक जुझारू नेता आने वाले थे। वे आए । चेहरे पर ही क्रांति की चमक थी। मजदूरों ने तालियों से उनका स्वागत किया। मजदूरों की दशा देखकर वे पहले द्रवित और फिर क्रोध में हो गए । लम्बा–चौड़ा भाषण
न देकर वे सीधे प्वाइंट पर आ गए । उन्होंने चीखकर पूछा.क्या तुम्हारे घर में राशन है? सभी मजदूर मायूसी में बोले-नहीं ।
नेता- रहने को घर है?
सब-नहीं ।
नेता-पहनने को कपड़ा है?
सब-नहीं ।
नेता- कुछ पैसा वैसा है?
सब-नहीं
नेता-तुम्हारे पास माचिस है?
सब- हाँ, है ।
नेता-तो जला क्यूँ नहीं डालते इस व्यवस्था को । अभी इसी वक्त।
सब-माचिस में तीलियाँ नहीं हैं ।
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