माली ने जैसे ही बगीचे में प्रवेश किया। कुछ पौधे उल्लास से तो कुछ
तनाव से भर गए ।
माली ने अपनी खुर्पी सँभाली। गुलाब के पौधो के इर्द–गिर्द उग आई घास को खोद–खोद कर क्यारी के बाहर फेंकने लगा। उसके बाद उसने मिट्टी में खाद डाली और क्यारी को पानी से भर दिया।
क्यारी के बाहर एक तरफ घायल पड़े घास को माली इस समय जल्लाद जैसा लग रहा था। पर वह बेचारा कर क्या सकता था। ठीक इसी समय घास को बगीचे के बाहर वाली सड़क से ऊँची–ऊँची आवाजें सुनाई देने लगीं-मजदूर एक ता जिन्दाबाद । मजदूर एक ता…
आवाजें और ऊँची होती चली गईं। थाड़ी देर में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज शुरू कर दिया। आन्दोलनकारी इधर–उधर भागने लगे। चीख–पुकार मच गई। चोट खाये कुछ लोग बचने के लिए बगीचे की ओर भागे। पुलिस लाठियाँ भाँजते हुए वहाँ भी पहुँच गई।
गुलाब ने कोलाहल सुना तो पास ही घायल पड़ी घास से इठलाते हुए पूछा.‘‘अबे घास! यह सब क्या हो रहा है ।’’
घास ने तिलमिलाकर जवाब दिया.‘‘कुछ खास नहीं, बस किसी गुलाब के लिए घास उखाड़ी जा रही है।’’
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