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लघुकथाएँ - देश -संतोष सुपेकर
हम बेटियाँ हैं न!

बारह वर्षीय निकिता और दस वर्षीय अमिता घर में अकेली थीं। उनका पाँच वर्षीय इकलौता भाई, माता–पिता के साथ किसी विवाह समारोह में गया हुआ था। दोनों बहनें बैठकर, घर के पुराने फोटो एलबम देख रही थीं।
‘‘ये देखो दीदी, भैया का जन्म के बाद का पहला फोटो, ये उसका फर्स्ट बर्थ डे का फोटो, पीछे हम दोनों भी खड़े हैं।’’
‘‘और ये देख, भैया का पहली बार चलते हुए , नहाते हुए , खिलौनों से खेलते हुए , खाना खाते हुए , कितने सारे फोटो हैं। भैया कितना प्यारा लग रहा है न!’’
‘‘पर दीदी, भैया के इतने सारे फोटो एलबम में हैं, हमारे तो बस, दो–चार ही फोटो हैं, ऐसा क्यों?’’ एक तरफा व्यवहार देखकर नन्हीं अमिता खुद को रोक न सकी।
‘‘हम बेटियाँ हैं न!’’ बड़ी ने समझाया।
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