बिसात बिछ गई और फिर चल पड़ा प्रतिष्ठा पाने और प्रतिष्ठा गँवाने का खेल। एक तरफ काली मोहरें तो एक तरफ सफेद। कोई राजा तो कोई प्यादा, कोई सेनापति तो कोई हाथी, घोड़े ऊँट से सजी सेना का अंग। बिगुल बजते ही प्रारंभ हो गया मारने–काटने, षड्यंत्रों के रचाने और गिरने–गिराने का खेल। योजना के अनुसार साम–दाम–दंड–भेद अपनाते हुए अपनी–अपनी चालें चलते हुए शह और मात का खेल लंबे समय तक चलता रहा। कई प्यादे लहूलुहान तो कई सेनापति औंधे मुँह पड़े थे। खेल का अंत हो गया विजयी राजा ने क्रूर अट्टहास किया और चुनौतीपूर्ण शब्दों का प्रयोग करते हुए अपने दंभ को द्विगुणित कर लिया। पूरी बिसात पर अकेला वह और उसका दंभ कुछ देर तक नाचता रहा।
खेल खत्म हो जाने पर सारे मोहरे एक ही बॉक्स में भर दे गए , काले, सफेद सभी। बॉक्स के अन्दर की बिसात का दृश्य कुछ अलग ही था। सभी मोहरे एक –दूसरे के ऊपर पड़े थे। चंद मिनट पहले जो राजा अपने दंभ का नंगा नाच दिखा रहा था वह एक अदने से प्यादे के नीचे पड़ा था। राजा का सारा दंभ बहकर बॉक्स से बाहर आ रहा था।
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