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लघुकथाएँ - देश -आशा खत्री ‘लता’
अपने–अपने प्रश्न

एक उजाड़ सी जगह पर एक आदमी ने साँप को देखा। साँप की नजर भी आदमी पर पड़ी। आदमी दौड़कर घर में घुस गया और साँप बिल में। थोड़ी देर बाद आदमी लाठी लेकर अकड़ता हुआ बाहर आया। और चुपचाप साँप की टोह में लग गया। साँप ने भी इत्मिनान करने को बिल से बाहर झाँका। मगर फौरन नीचे होकर भी वह खुद को आदमी की नजर से बचा न सका। आदमी ने साँप के बिल को लाठियों से ध्वस्त कर साँप को मार डाला। साँप मरता–मरता सोच रहा था कि मैंने तो जिन्दगी में किसी आदमी को नहीं काटा फिर मुझे ऐसा सिला क्यों?
गमगीन हृदय धरती सोच रही थी कि निरंकुश हो आए एक बेटे से अपनी शेष सन्तानों को बचाऊँ तो बचाऊँ कैसे?
उधर प्रकृति सोच रही थी कि मैंने तो साँप को जहरीला बनाया था फिर ये आदमी इतनी जहरीला कैसे हो गया?
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