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लघुकथाएँ - देश -डॉ श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’
अन्नदाता

‘राम भरोसे, इस तरह से कर, तू पहले मिट्टी से वट्टे बना ले, फिर प्याज की पौध ले कर, .....तू पहले इतना ही कर’, जोगिन्दर सिंह अपने माली को अपनी कोठी में एक तरफ पड़ी जगह पर सब्जी लगवाते हुए कह रहा था।
राम भरोसे उसी तरह किए जा रहा था, जिस तरह उसे हिदायत होती। वास्तव में वह जोगिन्दर सिंह की कोठी के लिए नया ही था।
‘इक बार में बात को चंगी तरह समझ लेते हैं, समझे।’ जोगिन्दर सिंह ने कहा।
इतने में ही कोठी के गेट के आगे कार रुकी और तीन–चार व्यक्ति उतरे। जोगिन्दर सिंह उनकी तरपफ बढ़ गया। सत श्री अकाल बुलाकर, लॉन में पड़ी कुखसयों पर बैठ गए।
जोगिन्दर सिंह ने राम भरोसे को चाय पानी लाने को कहा। और वह सब बातें करने लगे।
‘देखो! जब तक केन्द्र से भइयों का राज नहीं जाता, तब तक देश की हालत ठीक नहीं होगी।’ उनकी मुराद देश के सबसे बड़े राज्य यू.पी. से आने वाले सबसे अधिक सांसदों से थी।
‘बताओ भला, भइयों का राज कैसे जाएगा? चाहे कोई पार्टी हो, प्रधनमंत्री तो भइया ही होगा।’
‘ठीक है बात तो, इसी क्षेत्र से ही सब से ज्यादा उम्मीदवार आते हैं।’
‘पर फिर, कुछ न कुछ चारा तो किया ही जाए। ये भइए पिछले चालीस सालों से, साले देश की छाती पर चढ़े बैठे हैं। देश को भूख व नंगेपन के हवाले कर छोड़ा है। कम से कम एक बार तो निकाले ही जाएँ।’
सभी मिल कर अपनी भड़ास निकालने में लगे थे। चाय पीकर वह चले गए।
राम भरोसे को जब बर्तन उठाने के लिए बुलाया तो वह आकर जोगिन्दर सिंह के पाँव पड़, रुआँसा सा बोला, ‘आप हम को नहीं निकालना, हमसे कोई गलती हुआ है, तो हम मुआफ़ी चाहते हैं। आप हमार भाई बाप हैं सरकार।’
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