लता को इस घर में दुल्हन बने आये दो सप्ताह ही हुए थे । वो सुन्दर तो थी ही; किन्तु उसकी शालीनता और मृदुभाषिता ने सब का दिल जीत लिया था । रस्मों -रिवाज़ की औपचारिकता के बाद अब लता धीरे -धीरे अपना सामान अलमारियों में लगाने में लगी थी । उसकी सास मीरा लता को इस घर के परिवेश में पूर्णतया ढल जाने में सहायता कर रही थी । दोनों को ही इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता था कि कोई भी एक दूसरे की परिधि को ना लाँघे ।
दो सप्ताह के बाद मीरा ने देखा कि लता ने अपने कपड़े , जूते सभी सुचारू रूप से लगा दिए थे; किन्तु नीचे के कमरे में पड़े उसके खाली सूटकेसों के पास ब्राउन कागज में लपेटा एक छोटा सा पैकेट पड़ा रह गया था । कुछ दिन तक मीरा ने सोचा-कुछ होगा , खोल लेगी;। किन्तु काफी दिनों तक जब वो नहीं खुला तो मीरा ने उत्सुकतावश लता से पूछा,” बेटी, इस पैकेट में क्या है? आप इसे खोलना भूल गई हो । काफी दिनों से यहीं पड़ा है”।
लता ने सकुचाते हुए कहा,” माँ , इसमें मेरे मम्मी पापा की तस्वीर है । समझ में नहीं आया कि कहाँ रखूँ ?”
मीरा ने बड़े स्नेह से उसे कहा , “अरे जरा खोलो तो । देखें तो कैसी तस्वीर है?”
लता ने तस्वीर को ब्राउन कागज से निकाला और बड़े ही प्रेम से उसे निहारते हुए अपनी सासू माँ को पकड़ा दिया ।
मीरा ने कहा,” अरे इतनी सुन्दर तस्वीर, दिखाओ तो । कहाँ रखूँ ? अरे इनकी जगह यहाँ हैं न । और उसने बिना वक्त गँवाए उस तस्वीर को घर की बैठक के कोने वाली टेबल पर रख दिया ।35 वर्ष पहले मीरा ने ऐसा ही अपने लिए सोचा था ;किन्तु वह कर नहीं पाई थी।
अब उस टेबल पर मीरा और उसके पति की तस्वीर के साथ-साथ लता के माता – पिता की तस्वीर भी सज गई ।
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