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लघुकथाएँ - देश -रीता कश्यप
फर्ज़

दफ्तर से लौटते हुए सामने चौराहे पर नज़र पड़ी तो देखा सैंकड़ों कौवे काँव - काँव करते हुए आसमान में घूम रहे हैं। क्या अभी तक वह घायल व्यक्ति यहीं इसी चौराहे पर पड़ा है । एक ही झटके में सुबह की घटना आखों के सामने घूम गई ।सुबह दफ्तर जाते हुए इसी चौराहे पर दो तेज़ रफ्तार वाहन आपस में टकरा गये थे।एक व्यक्ति खू़न से लथपथ सड़क के बीर्चोबीच पड़ा था।अनेकों वाहन उससे बचते- बचाते हुए वहां से निकल गए लेकिन रुका कोई नहीं । हर कोई जल्दी में था। मैं भी अन्य लोगों की भाँति दिल ही दिल में दु:खी होती हुई यहाँ से निकल आई थी।कौवों को देखकर लगा वह व्यक्ति बिना मदद के यहीं दम तोड़ गया होगा।मैं सोचने लगी जीवित की मदद करना तो दूर क्या लाश को भी सम्मान नहीं दिया गया । चौराहे पर पहुँचते ही देखा -ठीक उसी जगह पर सड़क के बीचो बीच एक कौवा मरा पड़ा था।
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