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लघुकथाएँ - देश -भावना वर्मा
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दस वर्षीय कंचन किताब पर झुकी दत्तचित होकर पढ़ रही थी कि एक ढेला सनसनाता हुआ माथे पर आ लगा । उसने चीख कर सर पकड़ लिया । छह वर्ष का तन्मय ढेला फेंककर खुश होकर हँस रहा था ।
कंचन रो रही थी – मम्मी ! देखो इसको ! फिर ढेला फेंका इसने !!
मैं पिछले दो दिनों से छोटी बुआ के घर ऐसा ही नज़ारा देख रही थी ...जैसी कि मुझे उम्मीद थी , बुआ ने कंचन को जोर का थप्पड़ लगाया , डाँट कर बोली :
– तुम यहाँ से हट नहीं सकती थी , जब देख रही थी कि वो ढेला फेंक रहा है तब.....
कंचन झुंझला उठी –– मैं पढ़ूँ कि इसे ही देखती रहूँ ? तुम उसे कभी नहीं डाँटती ........!!
एक चाँटा कंचन को फिर लगा – फिर शुरू की तरह तुमने बहस ? कितनी बार कहा हैं कि जबान मत लड़ाया करो , लड़की हो , लड़की की तरह रहो !!
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