गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश -सुरेन्द्र कुमार पटेल
होमवर्क

कम दर्जे के बच्चों को पढ़ाते हुए उन जैसे बच्चों से मोह-सा हो गया है ।
क्या नाम है ? किस क्लास में हो ?हिन्दी कौन -से सर पढ़ाते हैं ?
गणित-अंगरेजी समझ में आती है ?बड़ा होकर क्या बनना चाहते हो ? आदि सवालों
की पूरी सूची होती है बच्चों से बातचीत करने के लिए । उस रोज स्कूल जाने के लिए मैं एक पानठेले के पास अपने एक मित्र का इन्तज़ार कर रहा था ।
ठेला अभी खुला नहीं था ।लकड़ी के दो ऊँचे पाये पर रखे लकड़ी के पटरे पर मैं बैठा गुनगुना रहा था कि मेरी दृष्टि पानठेले के नीचे छुपे एक मासूम बालक पर जा टिकी ।उसकी डबडबाई आँखें उसके किसी अज्ञात भय को अभिव्यक्त कर रही थीं।उसके पीठ पर भारी-भरकम बस्ता लटक रहा था । यह मेरा ही विषय-क्षेत्र था ।इसलिए मेरा रुचि लेना स्वाभाविक था ।मैने उसे बाहर आने को कहा तो वह ठेले के नीचे ही पीछे की ओर और सरकता गया ।
"कोई नहीं है , निकल आओ "-मैने उसका भय भाँपकर कहा ।
"नहीं ! सर देख लेंगे ।" गले के नीचे लटकती टाई को चूसते हुए उसने कहा ।उसने
थोड़ा आगे सरककर मेरी ओर दृष्टि की तो मैने भी अपनी गरदन झुकाकर उसकी
दृष्टि में अपनी दृष्टि टिका दी ।
"नहीं-नहीं ,इधर कोई नहीं है ।" मैने गली के दोनो छोरों का परीक्षण करने का अभिनय किया ।मेरे आश्वस्त करने के बाद जैसे उसे मुझ पर पूरा भरोसा हो गया हो ,वह मासूम ठेले के नीचे से बाहर निकलकर मेरी ओट में खड़ा हो गया ।
"किस क्लास में हो ?" मैने सहृदयता से पूछा ।
"स्टैण्डर्ड टू में "
उसने मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए बताया ।वह भयातुर मुझे विश्वास और अविश्वास के मध्य तौल रहा था । उसे लग रहा था कहीं मैं भी उसे फँसा तो नहीं रहा हूँ ।
"किस स्कूल में हो?" मैने फिर से पूछा ।
". . .उसमें ।" उसने चौराहे पर स्थित किराए के मकान में संचालित एक स्कूल के बोर्ड की तरफ अपनी उँगली की ।
"पिताजी क्या करते हैं ?"
"रिक्शा चलाते हैं ।"
"और माँ ?"
"कुछ नहीं ।"
"पापाजी पढ़ाते हैं ?"
"नहीं ।"
"तो फिर मम्मी पढ़ाती होंगी ।"
"वो तो खुद भी नहीं पढ़ी हैं ।"
इन प्रश्नों के उत्तर देता हुआ वह लगातार गली के दोनों छोरों की ओर निहारता रहा ।मैने बात आगे बढ़ाई , "तो फिर ट्यूशन पढ़ते होगे ।"
"हम ट्यूशन कैसे पढ़ सकते हैं ।"
"क्यों ? "
"ट्यूशन वाले पैसा लेते हैं न!"
मै कहने वाला था ,' और उतने पैसे तुम्हारे पापा के पास होंगे नहीं , है ना ' किन्तु ये बात उस बच्चे से कहना उचित नहीं समझा । मुझे मुद्दे तक पहुँचना था , जो अभी अनसुलझा ,अनुत्तरित था ।
"तुम स्कूल क्यों नहीं गये ?" मैने जोर देकर पूछा ।
"होमवर्क पूरा नहीं है ।"
"क्यों "
"खुद समझ नहीं आता न ।"
"मुझे दिखाओ ।"-मैने उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाया ।पर न जाने क्यों वह मुझसे और वार्तालाप नहीं करना चाहता था ।
लकड़ी के पटरे पर अब तक रखा अपना भारी बस्ता कंधे पर लटका लिया और गली के
दोनों छोरों को उसने आहिस्ता झाँका ।मेरे रोकने के प्रयास के बावजूद उसने अपने नन्हें कदम स्कूल की सीध में किन्तु उसके विपरीत ओर जाने वाली गली में बढ़ा दिए ।जब तक वह स्कूल से दिख सकता था, वह मुड़-मुड़कर शंकित दृष्टि से पीछे देखता रहा और उसके परे पहुँचने पर तेज कदमों से आगे जाता गया ।
मैने सोचा , वह अपने घर चला गया होगा ।पर मित्र के साथ बाइक पर जाते हुए हमने देखा वह उस समूह का हिस्सा बन गया था ,जहाँ वह अपना बस्ता पेड़ की ओट में छुपा मजे से जुआरियों का खेल देख रहा था ।
-0-

 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above