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लघुकथाएँ - देश - कविता मालवीय
समझदारी

अध्यक्ष से मिलने का समय लेकर बाहर वाले इंतज़ार कक्ष में माँ बेटी बैठे हुए थे . जितना पद बड़ा होता है उनके कमरों से पहले पड़ने वाले इंतज़ार कक्ष बड़े होते जाते है उसके साथ मीटिंग टाइम और लंच टाइम की भी अवधि भी अपने पंख पसारने लगती है .माँ को आशा थी कि यहाँ कुछ काम बन जाएगा , माँ ने बेटी को मना किया था साथ आने के लिए पर वह लड़ियाने लगी मानी नहीं और अब बेटी को ऑफिस जाने के लिए देर हो रही थी कि अचानक . ...सर आ गए ... की आवाज़ से माँ बेटी खड़े हो गए ..
सर ने सरसरी सी नज़र दोनों पर डाली और अपने कमरे में चले गए बुलावा आया , बेटी ने माँ को शाल ठीक से उढ़ाया ,माँ अपनी बड़े अवसरों पर पहनने वाली ऊँची हील टक-टक करती हुई अन्दर गई , अध्यक्ष ने एक दो बात पूछ कर पूछा , "आपके साथ कौन आई हैं ?"
"मेरी बेटी ।"
"उसे बुला लीजिए ! "
"जी ........."
बेटी के साथ बात करने के बाद अध्यक्ष ने माँ से अपना प्रोफाइल भेजने के लिए कहा और माँ बेटी ने वहाँ से विदा ली।
रास्ते में बेटी ने पूछा ,"माँ ! आपकी उससे क्या बात हुई?"
"कुछ भी नहीं "
"आप अपना प्रोफाइल भेज देना "
"मुझे नहीं लगता कुछ होगा !"
"होगा , पर अब मैं आपके साथ नहीं आया करूँगी .... लगता है आपका नहीं , मेरा साक्षात्कार था ! अजीब -से सवाल पूछे !" समझदार बेटी ने माँ को गले लगाया और ऑफिस की मेट्रो की तरफ बढ़ गई ।
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