गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश - परस दासोत
छोटे हम

‘‘पापा! क्या किन्नर, औरत होते हैं? मम्मी जैसे?’’
‘‘नहीं, बेटे!’’
‘‘मर्द होते हें!’’
‘‘नहीं!’’
‘‘तो क्या किन्नर, देवता होते हैं?’’
‘‘ ……।’’
‘‘प्लीज, पापा! बतलाइए न! ‘क्या होते है, किन्नर?’ पापा,
‘‘दीपू बोल रहा था-‘किन्नर, न मर्द होते हैं, न औरत।’
‘‘बेटे! अभी तुम छोटे हो, नहीं समझोगे!’’
‘‘आप तो बड़े हैं, पापा! आप तो समझते होंगे?’’
‘‘कहाँ बेटे! मैं अभी छोटा हूँ!’’
‘‘आप छोटे हैं ! पापा, तो क्या किन्नरों को समझने के लिए……।
‘‘बहुत बड़ा ‘आदमी’ बनना पड़ता है?’’
‘हाँ बेटे!
-0-

 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above