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लघुकथाएँ - देश - डा जगदीश व्योम
आदत

सब्जी वाला जब किसी तरह छह रुपए किलो से कम पर लौकी और टमाटर देने को तैयार नहीं हुआ तो मैंने आधा–आधा किलो लौकी, टमाटर और तीन रुपए की एक पाव अदरख देने को कहा। दस रुपए के नोट में से उसने मुझे तीन रुपए वापस कर दिये। मैंने जानबूझकर तीन रुपए चुपचाप जेब में रख लिये।
आपको इसने कितने पैसे वापस किये हैं ?– पत्नी ने मुझसे पूछा।
ठीक ही किये हैं...........आओ चलते हैं– मैंने कहा, और चलने को हुआ।
जरा देखिये तो– पत्नी ने फिर दोहराया।
मैंने जेब से चुपचाप पैसे निकाले, जिनमें एक दो रुपए का सिक्का था और एक सिक्का एक रुपए का था।
क्यों भाई ! कितने पैसे वापस किये हैं ?
बाबू जी, पूरे पैसे वापस किए हैं............आप हिसाब जोड़ लीजिए।– सब्जी वाला बोला।
नहीं–नहीं......ठीक नहीं दिए हैं।– मैं एक–एक सब्जी की कीमत पूछने लगा।
आलू आधा किलो – तीन रुपये
लौकी आधा किलो – तीन रुपये
अदरक एक पाव – तीन रुपये
और तुमने मुझे दस के नोट में से तीन रुपये वापस भी कर दिए।– मैंने जब दो रुपये का सिक्का उसकी ओर बढ़ाया तो उसने उसे लेते हुए मेरी ओर अजीब दृष्टि से देखा।
तुम्हें यह सब करने की क्या जरूरत थी ............अरे! ये सब्जी वाले महा चोर होते हैं........कम तौलते हैं, मँहगा देते हैं..........। – मैंने पत्नी पर झल्लाते हुए कहा।
देखिए ! आज अगर आप दो रुपये ज्यादा ले भी लेते तो आप अमीर तो हो नहीं जाते........हाँ भविष्य के लिए आदत जरूर बिगड़ जाती.
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