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लघुकथाएँ - देश - डॉ. प्रमथनाथ मिश्र
न्याय व्यवस्था

छत और दीवार इन दोनों मुवक्किलों के वकीलों की बहस जारी थी। दीवार प़क्ष के वकील अपने ढेर सारे गवाहों को प्रस्तुत कर यह सिद्ध कर चुके थे कि दीवार ने छत को बहुत समय से अपने कन्धे का आश्रय दिया है। अब वह थक चुकी है और उसे आश्रय नहीं देना चाहती है।
इस पर छत पक्ष का वकील बिना किसी गवाह के बार–बार जज से यही निवेदन करता है कि उसका मुवक्किल उचित जगह पर है। उसे अनायास आश्रय मिल रहा है–यह उसका भाग्य है। अगर उसके भाग्य के साथ किसी का दुर्भाग्य या सौभाग्य जुड़ा है तो वह क्या करे? चाँद अपनी शीतल चाँदनी चांडाल के आंगन से अलग नहीं न कर सकता? और जौ–गेहूँ के साथ घुन का दुर्भाग्य जुड़ा हुआ है। आखिर यह क्यों है?’’
जज ने कहा, ‘‘वकील साहब, उपदेश मत दीजिए, गवाह पेश कीजिए।’’
छत पक्ष के वकील ने कहा, ‘‘यहाँ गवाह की क्या आवश्यकता है, योर ऑॅनर!’’
उसी प्रकार से कुछ देर की बहस के उपरान्त जज ने निर्णय सुनाया, ‘‘छत–पक्ष की ओर से कोई गवाही या किसी के आश्रय पर रहने का ठोस कारण नहीं होने के कारण उसे आदेश दिया जाता है कि वह अपना बोझ दीवार से तीन दिन के अंदर हटा ले अन्यथा उसे पुलिस की मदद से हटा दिया जाएगा और कैद की सजा भुगतनी पड़ेगी।’’
यह निर्णय सुनकर दीवार और उसके संगे संबंधी अत्यंत प्रसन्न हुए‍ ; लेकिन पाँचवे दिन तो उनके ऊपर जैसे पहाड़ टूट पड़ा। देखते हैं कि पांच छह लोग हथियार लेकर उसकी जड़ खोदने पर तुले हुए हैं।
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