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लघुकथाएँ - देश - अमित कुमार
मेमोरी

जाती सर्दियों की कोई शाम रही होगी। धूप में थोड़ी गर्माहट आ गई थी पर अभी वह सुखद लग रही थी। क्यारियों में रंग-बिरंगे फूलों का खिलना अपने चरम पर था-चटक रंगो का रंगोली सजाते से। हवा में तेजी और ठड़क गुत्थम-गुत्था थे। कोयल की कूक थी, पर मद्धम। पेड़ अपने पुराने आवरण उतारकर नए परिधान के लिए तैयारी करने लगे थे। सेमल और पलाश सरीखे पेड़ों ने तो चटक लाल रंग से अपना शृंगार करना शुरू भी कर दिया था। वह सभी कुछ था जो बरसों-बरस से एक-सुर-ताल में प्रकृति में होता चला आ रहा था। नहीं था तो बस इन सबको देखने, महसूस करने और इनका नजरा लेने के लिए मनुष्य के पास समय। यह सन् 2032 था। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने मनुष्य के जीवन को तो बेहतर बना दिया था पर वह बहुत हद तक हाड-मॉस का मशीनी मानव सा बन गया था-लगभग एकाकी, घड़ी की चाल से नियंत्रित होने वाला।
परन्तु वे दोनों मौसम का भरपूर आनन्द ले रहे थे-बड़े मैदान के किनारों पर लगी कुर्सियों पर बैठे हुए। दोनों विश्वविद्यालय के अलग-अलग भाषाओं के प्राचीन काव्य साहित्य विभाग में रिकार्ड कीपर थे। पुरुष वहाँ वर्षों के कार्यरत था ,पर स्त्री को अपने विभाग में आए कुछ माह ही हुआ था। दोनों लंच में पूरा एक घंटा धूप में बैठते थे। इससे उन्हें ऊर्जा मिलती थी। शाम को भी वे घंटे आधे घंटे के लिए साथ बैठ जाते थे। पुरुष को लगता कि प्रेम एवं शृंगार पर अब तक हिन्दी साहित्य में जितना लेखन हुआ है ,उन सबकी नायिका उनकी प्रेयसी है। स्त्री भी महसूस करती कि पूरे यूरोपियन साहित्य में जितनी भी रोमांटिक पोइट्री है ,उन सब में उसके साथी पुरुष की उपस्थित है।
वे दोनों रोबोट थे। उनमें संवेदना थी मशीनों में संवेदना अब आप बात हो चली थी, जो उनके कार्य की प्रकृति के अनुरूप डाली जाती थी। पुरुष रोबोट की विभागाध्यक्ष एक महिला थीं। स्त्री रोबोट के विभागाध्यक्ष एक पुरुष थे। विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया था कि, विपरीत लिंगी अधीनस्थ के साथ काम करना ज्यादा सहज एवं दोस्ताना होता है, आउटपुट भी ज्यादा आता है; फिर चाहे वह अधीनस्थ मशीनों के वेश-भूषा में स्त्री-पुरुष ही क्यों न हो। उनके बीच के सुखद अनुभूति बहुत दिनों तक छिपी नहीं रह सकी। विश्वविद्यालय के सर्विस सेन्टर पर जब मासिक चेकिंग में यह पाया गया कि स्त्री रोबोट की मेमोरी में प्राचीन यूरोपियन काव्य एवं भाषा की जितनी फीडिंग की गई थी उसके से लगभग तीस प्रतिशत मेमोरी डीलिट कर दी गई थी। यह सूचना रोबोट उपलब्ध कराने वाली कम्पनी एवं विभागाध्यक्षा को करा दी गई। कंपनी ने बड़ी सहजता से कह दिया कि ऐसे रोबोट ,जिनको साहित्य के कार्यों में लगाया जाता है उनकी संवेदना बढ़ते एवं बदलते हुए देखा गया है। हमारे इंजिनियर इस दिशा में शोधरत हैं। विभागाध्यक्ष ने इस रोबोट को तुरन्त बदलकर पुरुष रोबोट की व्यवस्था करने को कहा। उनके इस आदेश पर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ कि अपने इर्द-गिर्द केवल स्त्री सहकर्मी चाहने वाले और बड़ी से बड़ी गलतियों पर स्त्रियों को क्षमा कर देने वाले विभागाध्यक्ष ने फीमेल रोबोट बदल कर मेल रोबोट के लिए कहा तो कहा कैसे?
इसका रहस्योद्घाटन उनकी एक हम प्याला मित्र ने किया। उन्होंने बताया कि लाख तकनीकी विकास हो जाए मनुष्य चाँद नहीं दूसरी गैलेक्सी तक पहुँच जाए, दुनिया से कितने भी बदलाव आ जाएँ ;परन्तु इनकी मेमोरी से जाति और उच्च कुल डिलिट नहीं होंगे। उन्हें यह बर्दाश्त नहीं हुआ कि उनकी रोबोट उस जाति वाले विभागाध्यक्ष से प्रेम कैसे कर सकती है जो उनके अनुसार उनसे छोटी जाति का है।
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