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लघुकथाएँ - देश - सतीश दुबे
ममी–परिवार

सुबह का उजाला किचन–कक्ष में पर्याप्त पसरने पर भी चिर–परिचित पदचाप सुनाई नहीं देने से सभी बेचैनी बढ़ने लगी थी। सब्र की बेरहमी से निजात पाने के लिए सब जिज्ञासा भरी निगाहों से एक दूसरे की ओर देखने लगे। सन्नाटे को तोड़ते हुए बर्तन–रैक से तपेली कुरकुराई–‘‘मैं ऐसी औंधी कब तक सोई रहूँगी। रोज की तरह अब तक मेरा हैंडल–हाथ में थामकर मुझे हरकत में लाकर काम पर ल गा देती है।’’
उसकी आवाज सुनकर पानी–उलीचना बोला–‘‘तुमको हाथ में थामकर ममी सबसे पहले मेरे पास तो आती है।’’ ‘‘फिर अपने कोमल हाथ से मुझमें निहित जादुई शक्ति को चिकौटी काटकर जागृत करती है।’’ ‘‘बर्नर भैया, भूल रहे हो, ममी, तपेली –दीदी को गैस–दादी के पास बिठाकर मुझे थामती है।’’ मेरी धीमी किटू आवाज के साथ निकलने वाली चिंगारी ही तुम्हें आग बनाती है...।’’ सॉरी लाइटर भैया मैं तो भूल ही गया था कि मेरे अस्तित्व का प्रमुख आधार तो तुम्ही हो।’’
इसी प्रकार जि का हैंडल, शक्कर–चाय के डिब्बे, स्पून–समूह सभी प्रात: कालीन थपकी के लिए ममी को याद करने लगे। सब जानते हैं कि चाय की पहली पारी से ममी उनके बीच आ जाती है और किंचित अंतराल से रात तक उनके साथ रहती है।
‘‘लेकिन आज ममी अभी तक क्यों नहीं आई। हममें ऐसा कोई है भी तो नहीं जो मुझमें पानी डालकर गैस–दादी के माथे पर बिठा दे और मेरी सिटी आवाज सुनकर ममी दौड़ी चली आए। दरवाजा भैया तुम आहट लेकर देखो ना क्या बात है।’’ यह प्रस्ताव व्यथित मुद्रा में मौन बैठे प्रेशर–कुकर का था।
‘‘सब घर में ही है छोटा चिंटू और पप्पा भी। पप्पा इधर–उधर हलचल में लगे है न जाने क्या बात है।’’ किचन गेट रिपोर्ट देते हुए कहा।
अचानक किसी के आने की आहट सुनकर, सब खुश हो गए। किन्तु यह ममी नहीं दो अपरिचित औरते थी। जिनकी पारस्पारिक बातों से सबको मालूम हुआ ममी की तबीयत एकदम खराब हो गई और वे इलेक्ट्राल देने के लिए पानी, चम्मच ओर ज्यूसर लेने आई है।
उनके जाने के बाद चमचू,ग्लास और ज्यूसर के भाग्य ममी की सेवा में जाने के लिए सब सराहने लगे। ‘‘वह जो एक औरत बाहर ग्राउन्ड में चिड़ियों के चहचहाने को अपशकुन कह रही थी ना वह नम्बर एक की बेवकूफ–मूर्ख है। उसे मालूम नहीं वे चहचहाते हुए दानों के लिए ममी को आवाज दे रही थीं। ममी मुझमें से रोज एक कटोरी चावल ले जाकर उनको दाना–भोजन देती है।’’ यह बुलंद आवाज औरत की बातसे आहत कीचन–गैस कबर्ड के नीचे बैठे चावल डिब्बे की थी।
अलग ही आसन पर बैठे मिक्सर महात्मा जैसे शांत स्वर में बोले–‘‘बड़े डिब्बा दादा मनको शांत कर लो। और आओ हम सब प्रार्थना करें बोलिए–‘‘हे प्रभु, हमारी ममी को एक–दो दिन में स्वस्थ कर देना, नहीं तो उनके ममत्व–स्पर्श ऊर्जा के बिना हमस ब निष्क्रिय और निर्जीव हो जाएँगे। बोलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु की....जय.....जय....।’’
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