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लघुकथाएँ - देश - कमलेश भारतीय
विभाजन

बहुत भारी बहसों में भाग लेने व सुनने का मौका मिलता रहा कि हमारे यहाँ अमीरी व गरीबी के बीच बहुत फासला है। हम इसे कैसे दूर कर सकते हैं? कर भी सकते हैं या नहीं? दीवाली का दिन आया। सब रों में दीवाली से कुछ दिन पहले ही रंग बिरंगी लड़ियाँ जगमगा कर अपनी अमीरी का परचम लहराने लगीं। हमारे पड़ोस का र अँधेरे में ही डूबा रहा। वे लोग दुकानों पर छोटे–मोटे काम करने सुबह ही निकल जाते हैं और घर की औरतें भी कोई न काम कर र का सहारा बनती हैं। मेरा नाती आर्यन उनके हमउम्र बच्चे विक्की से पूरी तरह हिलमिल चुका है। हर वक्त उसे खेलने के लिए बुला लाता है। वह खेल कर अपने घर चला जाता है।
दीवाली आ गई। मेरे नाती का मन था कि वह अपने हमउम्र से मिल कर पटाखे छोड़े। पर वह उसे कहीं दिखाई नहीं दिया नाती ने अपनी माँ से पूछा विक्की क्यों नहीं आया? माँ ने उसे प्यार से समझाया कि शायद उसके पास पटाखे न हों।
क्यों? आर्यन ने मासूम सवाल पूछा।
शायद उनके पापा इतने पैसे खर्च न कर सकते हों। माँ ने वैसा ही भोला- सा जवाब दिया।
तो मम्मी मैं विक्की को अपने पटाखों में से कुछ पटाखे दे दूँ?
हाँ–हाँ, क्यों नहीं।
आर्यन दौड़ कर विक्की के घर गया और सोने का बहाना कर रहे विक्की को उठाकर ले आया और अपने हिस्से के पटाखे उसे देकर खुद ताली बजाने लगा। पर क्या यह विभाजन दूर करना इतना सरल हैं? दीवाली की रोशनी में यह विभाजन और भी बुरी तरह चमकने ही नहीं बल्कि चुभने लगा। चुभता रहता है हर दीवाली पर।ं।
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