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लघुकथाएँ - देश - योगेन्द्र शर्मा
गुरुत्वाकर्षण

एक दिन फुर्सत के क्षणों में एक कसाई ने कटरे से कहा, ’’अबे ओ कटरे। मरने से पैले तेरी कोई इच्छा–विच्छा हो तो बता, लेकिन खबरदार....अपनी जिदंगी मत माँगियो.... हाँ।’’
यह सुनकर कटरे ने भरे गले से कहा, ‘‘भाई, मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाना चाहता हूँ ।’’
यह सुनकर कसाई बहुत जोर से हँसा, ‘‘अरे व मुझे अपनी कहानी सुनाएगा? अच्छा सुना....।’’
कटरे की दास्तान सुनकर, कसाई उदास हो गया। अपने पेशे को लानत भेजते हुए, उसने अपने फरसे को दुकान के बाहर फेंक दिया।
‘‘बापू.....बापू अमीरन को तेज बुखार हो रिया है। अम्मा ने पाँच रूपइए मँगाए।’’
बेटे को पाँच का नोट थमाते ही कसाई जमीन से फरसे को फिर उठा लाया, और कटरे को कसाई की नज़र से देखने लगा।
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