हाईकमीशन के हिन्दी विभाग से जवाब आया कि उसकी पांडुलिपि को नवलेखन पुरस्कार के लिए स्वीकृत नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठती। इस 'अनुदान' के लिए सिर्फ प्रकाशित पुस्तकें मान्य हैं।
मुस्कुराकर उसने पिछले साल के जवाब से इसका मिलान किया, जिसमे कि अंतिम मौके पर कहा गया था कि, 'आपका यह संग्रह चूँकि पूर्व में प्रकाशित हो चुका है इसलिए आपको अनुदान नहीं दिया जा सकता। अनुदान सिर्फ अप्रकाशित कृतियों को दिया जाता है।'
बाद में पता चला था कि जान-पहचान के किसी 'योग्य' को अनुदान दिया गया था।
वह समझ चुका था कि इस बार भी किसी योग्य को ही मिलेगा। उसने ई मेल को स्पैम में डालकर अनसब्सक्राइब कर दिया।
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