गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश - सुरेश शर्मा
उसके बिना

वह जब भी कुछ लिखने बैठते, दो साल का पोता उनके पास चला आता । कभी टेबल के नीचे घुसकर उनकी टाँगों से लिपट कर खरोंचता रहता, कभी पेन या चश्मा झपट लेता । उसकी इन बाल सुलभ चंचलताओं के मध्य उनका कार्य भी बिबट जाता था ।
आज सुबह से ही बिना नहाए-धोए वे लिखने में व्यस्त थे । समाचार-पत्र की माँग पर किसी प्रंसग विशेष पर लेख शाम तक तैयार करना था । प्रेस से दो बार फोन आ चुके थे ।
घर के सारे काम निपटाकर बहू ने कहा-‘पिताजी, यह शैतान आपको चैन से काम नहीं करने देगा । मैं इसको पापा के यहाँ ले जाती हूँ।शाम तक लौट आऊँगी। तब तक आपका काम भी निपट जाएगा।
उसको गए दो घण्टे से ज़्यादा हो चुके थे । घर सूना था। एकदम शान्त ! फिर भी लेख आगे नहीं बढ़ पा रहा था। विचारों के घोड़े लेख की बजाय बहू के घर की ओर दौड़ने लगते। वह मेरे पास आने के लिए मचल तो नहीं रहा होगा ?उनका ऊबड़-खाबड़ आँगन है, भाग-दौड़ में कहीं गिरा तो नहीं होगा ? बहू तो है ही बातूनी । फिर माँ-बेटी मिल जाने पर बच्चे की चिन्ता रहेगी उसे ? उन्होंने सोचा कि विचारों के घोड़े इसी तरह बहू के घर के चक्कर काटते रहे , तब तो यह लेख पूरा होने से रहा ।
आखिर उससे रहा नहीं गया । वे फोन उठाकर बहू के घर का नम्बर मिलाने लगे ।

-0-

 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above