गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश - धनश्याम नाथ कच्छावा
शोक की लहर

दीपावली के पॉंच दिन ही शेष रह गए थे। वह इस बार भी बीवी को घनतेरस पर सोने की अँगूठी, बच्चों को नए कपड़े व पटाखे दिलवाने का वादा निभा पाएगा या फिर पिछली बार की तरह अपने बीवी-बच्चों के अरमानों को पूरा करने में असफल रहेगा। अपनी प्राइवेट नौकरी से प्राप्त दो हजार रूपये के मासिक वेतन से इस भीषण मँहगाई में वह दीपावली की खुशियॉं कैसे खरीदे ? रधु यह सोचकर मन-ही-मन व्याकुल हो रहा था।
अचानक आज की डाक से मिले अपनी बुआजी के देहांत के शोक-संदेश ने उसकी सारी चिंताओ पर विराम लगा दिया। घर पहुँचते ही ने जेब में प्रमाणस्वरूप सुरक्षित रखे शोक-संदेश को दिखाकर परिवार में बुआजी के निघन के कारण शोक होने से दीपावली नहीं मनाने की घोषणा कर दी। इस सशक्त सामाजिक मजबूरी के आगे रघु के मघ्यमवर्गीय परिवार ने
भी कोई प्रतिकार करना उचित नहीं समझा।
अचानक बाहर से पटाखों की आवाज सुनाई दी। रघु का पाँच साल का लड़का खिड़की की ओर दौड़ा, पर कुछ सोचकर रुक गया। भोलेपन से बोला, ‘‘पापा! शोक में पटाखे छूटते हुए देखना मना है ना !’’
बच्चे की बात सुनकर रघु का गला रूंघ गया। बीवी की पलकों की भीगी कोरों को देखकर अपनी विवशता की छटपटाहट से रघु दहाड़ मारकर रोने लगा। रघु के घर में शोक की लहर छा गई।

-0-

 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above