"गुड मॉर्निंग, मिस्टर जॉर्ज, हाउ आर यू दिस मॉर्निंग?”
“डूइंग गुड मिस नीना”, कहकर जॉर्ज अपना सिर हिलाता है, और नीना की तरफ देखे बिना ही गुलाब के फूलों में उनका पानी देना जारी रहता है।
नीना आज फिर रोज़ की तरह तय वक्त पर सुबह सैर को निकली है, वही “गुड मॉर्निंग” का सिलसिला मशीनी अंदाज से दोहराया गया। जॉर्ज बिलकुल अकेले रहता हैं। अस्सी वर्ष की उम्र में भी सारा काम स्वयं करते देख नीना के भारतीय मन ने एक दिन हिम्मत करके पूछ ही लिया था, “वाइ डू यू स्टे अलोन?” उस दिन शायद जॉर्ज का मूड अच्छा रहा होगा। उसने बताया कि, पत्नी तो कैंसर से लड़ते-लड़ते वर्षों पहले ही उस अकेला कर गई थी और उसके बाद एक ही बेटा था, वो भी चला गया, सिर्फ फोन से साल में एकाध बार बात कर लेता है.....मुस्करा कर बोले थे...”दिस इस अमेरिका।” पता नहीं वो खुद अमेरिका में पैदा होने के एहसास तले या बेटे के कपूत होने के दु:ख में कह बैठे थे। फिर एक सुबह जैसे वो नीना का ही इंतज़ार कर रहे थे। नीना को सामने से आता देखकर उन्होने अपना काम बीच में रोका और पास आ कर कहने लगे, “नीना, मैं आपके बारे में ज्यादा तो कुछ नहीं जानता, पर आपके अकेलेपन से मेरी नि:शब्द दोस्ती हो गई है, मैं चाहता हूँ कि तुम अपने देश लौट जाओ।” नीना उनके इस रवैये पर हैरान हुई, कुछ समझने का मौका दिए बगैर वो तुरंत वापस मुड़े थे और दरवाजा बंद कर लिया था। नीना कुछ क्षणों के लिए जैसे पत्थर की मूर्ति बन, उस बंद दरवाजे को निहारती रही। रोज़ रात को करवटें बदलते हुए यही निश्चय करती कि कल सुबह वो जार्ज से अवश्य पूछेगी, उसने क्यों नीना को वापस अपने देश जाने के लिए कहा? यूँ तो हर रोज़ सुबह नीना का अकेलापन उनके अकेलेपन को “गुड मॉर्निंग” कहता, परंतु जार्ज उससे ज्यादा बात न कर तुरंत दरवाजा बंद कर लेता था। और नीना के लिए अनसुलझा सन्नाटा उस बंद दरवाजे पर छोड़ जाता। नीना को कुछ दिनों के लिए ऑफिस के काम से बाहर जाना पड़ा।
“वॉट हैप्पेंड ऑफिसर? आप सब जॉर्ज के घर के सामने क्यों खड़े हैं? एनी थिंग सीरियस?”, पूछते ही उसका दिल धक से रह गया, सामने से स्ट्रेचर पर जॉर्ज को फ्युंरल वैन में लाद चैपल होम ले जा रहे थे। ऑफिसर अड़ोस-पड़ोस से सब पूछताछ पहले ही कर चुके थे। बेटे को भी खबर कर दी गयी थी।
नीना घबरा कर धम्म से वहीं बैठ गई। उसे जार्ज के बंद दरवाजे पर पसरे सन्नाटे ने, उसके भविष्य का आईना जो दिखा गया था।
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