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लघुकथाएँ - देश - सुनील गज्जाणी
बाज़ार

'' महीने का हिसाब किताब बिगड़ गया है चीनी लेने गयी थी दुकानदार बोला , पेंतीस रुपये किलो हो गयी है छह रुपये और दो , मैं वापिस आ गयी ... पैसे और नहीं ले गयी थी मैं .. होते भी कहाँ से , सब्जी वाले का , आटे वाले का , दूध वाले . गुड्डू की फीस सभी जोड़कर देख लिया किसी में से भी छह रुपये नहीं बचते ! हाँ , वे सभी बोल रहे थे कि हम भी पैसे बढाएँगे , हम लाएँगे कहाँ से ? आप के सेठ के पास गयी थी छह रुपये लेने , तो बोला '' रुपये छह लो या सौ , ब्याज बराबर लगेगा और बोला कि तुम्हारे पति की बीमारी के इलाज़ के वास्ते वैसे भी उधार बहुत दे दिया , अगर वो थोड़े -थाडे भी ठीक हो गए हो तो काम पे भेजो ताकि क़र्ज़ उतरे , मेरी बाते तो सुन रहे होना !''
'' हूँ .... ' पति ने आँखे मूँदे ही प्रत्युत्तर दिया !
'' सुनो , फिर मैं अपना सा मुँह लिये चली आई . एक बात बताओ ना ,तुम्हारी नौकरी छठे वेतन में नहीं आती क्या ? जहाँ भी देखो इसी कि चर्चा सुनने को मिलती है , वैसे ये है क्या ? खैर .. अभी मतलब कि बात करूँ कि मैं ये छह रुपये किस खर्चे में से निकालूँ बताओ ना ? ''
पति अब निरुत्तर था !

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