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लघुकथाएँ - देश - भगीरथ
हड़ताल की घोषणा

एम. बी . हार्इ स्कूल , नये हेडमास्टर सबको ठीक करने के इरादे से डंडा हाथ में लिए , गलियारों में टहलने लगें ।
सात दिन बाद अध्यापकों से बोले - देखों सात दिनों में मैने स्कूल का रंग बदल दिया । अध्यापकों ने 'हां में सिर हिलाया । एक ने कहा - यहाँ डंडा छूटा और लड़के सर पर चढ़ बैठेंगे ।
दूसरे ने कहा - आपका प्रशासन काबिले -तारीफ है ।तीसरे ने कहा - साहब आपने बदमाशों को पानी पिला दिया । प्रशंसा सुनकर वे आत्मविभोर हो गये , बोले - ये सब आपके सहयोग से ही संभव हुआ हैं ।
छात्र आखिर बच्चे थे कभी हंसी के फव्वारे भी छूटते , तो कभी आवाजें भी उठती , तो कभी गलियारों में मस्ती से नाच भी उठते , तो कभी कि्शोर कुमार की तरह चीखते भी , बस हैडमास्टर की निगाह में एक क्लास आ गर्इ । उन्हे धूप में घुटनों और कोहनी के बल चलाया गया ।
हैडमास्टर दोस्त , मार्गदर्शक और दार्शनिक की बजाय थानेदार बन गया , थानेदार जैसे अपराधियों से व्यवहार करता है कुछ वैसा ही , छात्र उसे अपना दुश्मन समझने लगे , उसके इस अभिमान को तोड़ देने की बात उठी कि उसने सबके दिमाग ठीक कर रखे हैं ।
और एक दिन जब प्रार्थना हो रही थी , पंक्तियों में पीछे की ओर फुसफुसाहट होने लगी , प्रार्थना समाप्त होते ही दस मिनट तक 'हो - हो की चीखें उठती रही ।
हैडमास्टर का चेहरा फक्क पड़ गया , फिर तन गया , डंडा हाथ में हलचल मचाने लगा , किन्तु छात्रों की खिल्ली उड़ाने वाली सामूहिक आवाज ने उनके दिल में कहीं डर बैठा दिया था , वे सुरक्षा की तलाश में इधर - उधर झाँक रहे थे । अध्यापक भी सहमें , कहीं इल्जाम उनके सर पर ना आ जाए , छात्रों को शान्त करने का प्रयत्न करने लगे ।
मगर तभी एक नारा उछला , 'हेडाऊ वापस जाओ सामूहिक , समवेत स्वर में प्रत्युत्तर आया 'वापस जाओ -वापस जाओ ।
दूसरा नारा - थानेदारी नहीं चलेगी ।
आवाज में आवाज मिली 'नहीं चलेगी - नहीं चलेगी।
हैडमास्टर आफिस की तरफ तेज कदमों से चलने लगे पीछे - पीछे अध्यापकगण भी ।
और छात्रों ने हड़ताल की घोषणा कर दी । वे क्लास में जाने की बजाय, सड़क पर आ गये ।
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