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लघुकथाएँ - देश - भूपेन्द्र सिंह “ बेगाना”
चाय पानी

सवा चार बज गये थे बैंक परिसर खाली हो गया था । मैं अपना पेंण्डिंग काम खत्म करने में लगा था, अचानक से एक सज्जन आए और मेरे काउन्टर के सामने खडे हो गए ,कु्छ उदास और चु्पचाप ।
मैने कहा, “ भाई साहब अब तो बैंक बन्द हो गया है , कल आना ।”
सज्जन कुछ सकुचाते हुए बोले , “ सर मुझे तीन महीने से सैलरी नहीं मिली है , उसका एरिअर आया है , मुझे बहुत जरूरत है। ”
उन महाशय का चेहरा देखकर लगा सच बोल रहे हैं । मेरे दिल ने कहा-मदद करनी चाहिए । मुझे लगा ये अध्यापक हैं , फिर भी मैने पूछा , “ आप क्या करते हैं ?”
वो बोले, “ मैं प्राइमरी अध्यापक हूँ , सर । ”
मुझे उनसे हमदर्दी हुई , बेचारे अध्यापकों को तो कभी समय से सेलरी नहीं मिलती है ।
मैंने कहा , “ दीजिए ।”
उन्होंने लिस्ट बडी उम्मीद के साथ मुझे दे दी,उसमें दो तीन नाम थे ।
मैंने कहा, “ आज ही चाहिए क्या ?”
सज्जन ने सिर हिलाते हुए कहा , “ हाँ ।”
मैंने पूछा , “ ए टी एम है क्या ?”
“ है ।’ संक्षिप्त -सा जवाब उन्होंने दिया ।
मैने कहा , “ ठीक है।” और उनके सामने ही पैसे उनके खाते में ट्रांसफर कर दिए ।
मैंने कहा , “ अब ए टी एम से जाकर पैसे निकाल लीजिए ।”
सज्जन बहुत खुश हुए और बोले , “ सर बहुत-बहुत धन्यबाद ।”
उनकी मुस्कराहट देखकर मुझे भी बहुत खुशी हुई । तभी उनका हाथ उनकी जेब की तरफ गया और और कुछ रुपए निकाल कर बोले , “सर चाय-पानी के लिए…।।।”
मुझे झटका लगा, मैने बिगडते हुए कहा , “ ये क्या कर रहे हो ?, तुमने तो मेरी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया ।” सज्जन घबरा गए ।
मैं बोला , “ तुमने तो मेरे काम की कीमत लगा दी , काम के लिए हमें बहुत तनखा मिलती है जो हमारे लिए काफी है , अगर हमारी सर्विस अच्छी लगी तो तारीफ में दो शब्द कह देते वो ही काफी थे।पैसे दे कर हमारा ईमान क्यों खरीद रहे हो भाई ।”
मेरा गुस्सा देखकर बेचारे सज्जन सहम गए बस इतना ही बोल पाए, “ सोरी सर ।”
मैंने कहा , “ मैंने तुम्हारा काम इसलिए किया; क्योंकि तुम्हें जरूरत थी, इसलिए नहीं कि इसके बदले तुम मुझे रिश्वत दो । ”
सज्जन डरते हुए बोले , “ सर जहाँ भी जाओ पैसे के बिना कोई सुनता ही नहीं । ”
मैंने उन्हें समझाया , “ ऐसा मत कहो , हर जगह सिर्फ पैसों से काम नहीं होता,आज आपके अच्छे व्यवहार की बजह से आपका काम हआअ कि नहीं वो भी समय के बाद ।”
पैसे जेब में वापस रखते हुए बोले , “ जी सर ।“
मैने कहा, “ आप तो शिक्षक हो ।बच्चों को क्या सिखाओगे ? ”
वे मेरी बातें बडे ध्यान से सुन रहे थे और कु्छ बोल नहीं पा रहे थे; पर उनके चेहरे से लग रहा था कि उन्हें इस बात का काफी अफसोस हो रहा था ।
मैने उन्हें समझाया , “आपके हाथों में तो देश का भविष्य है आप ही ऐसा करोगे तो बच्चे क्या सीखींगे । आपको कभी भी काम पड़े प्यार से बोलना, आपका काम हो जाएगा ।”
उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आ गई और बोले “ जी सर, बहुत बहुत धन्यबाद,अब ऐसी गलती नहीं होगी ”- और कुछ सोचते हुए बैंक से बाहर चले गए ।
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