घर के पास ही एक आदिवासी परिवार रहता था।पति पत्नी और उनके पाँच बच्चे ।पति पत्नी सुबह ही काम पर निकल जाते और बच्चे सारा दिन गाय बकरियाँ चराते यहाँ वहाँ घूमते रहते।घर का दरवाजा ऐसे ही अटका दिया जाता।जब भी कोई बच्चा वहाँ से निकलता एक नज़र घर पर डाल ,पानी पीकर कुछ देर सुस्ताकर फिर गाय बकरियों को इकठ्ठा करने लगता।बच्चों की आत्मनिर्भरता देखकर आश्चर्य होता।कभी कभी सोचती -ये अनपढ़ आदिवासी कैसे इन बच्चों को सिखाता होगा,फिर सोचती इतना मजबूत बनना शायद इनके खून में ही है।
एक दिन सुबह- सुबह किसी छोटे बच्चे के चीखने की आवाज़ सुनकर घर से बाहर निकली ,तो देखा चौकीदार की सबसे छोटी बेटी जो मुश्किल से 3-4 साल की होगी मैदान में खडी है और तीन चार कुत्ते उसके आसपास खड़े जोर -जोर से भौंक रहे हैं। वह लड़की डरकर चीख रही है ।उसके पिताजी और बड़े भाई-बहन आसपास ही खड़े देख रहे हैं पर कोई भी न तो कुत्तों को भगा रहा है न ही उस लड़की को उठाकर घर ले जा रहा है।
कुछ देर चिल्लाने के बाद जब उस लड़की को ये समझ आया कि उसे ही इस स्थिति का सामना करना है उ,सने पास पड़े पत्थर उठाए- और उन कुत्तों को मारने लगी। उसे सामना करते देख उसका पिता अब इत्मिनान से पास ही पड़ी खाट पर बैठ गया और उसके भाई बहन अपने अपने काम में लग गए।वह लड़की उन कुत्तों को भगा कर घर चली गयी।
उस अनपढ़ पिता की परेंटिंग स्किल को सराहती मैं भी अन्दर आ गई।
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