‘‘अंकल,अंकल ! दो बूँद जिंदगी की देना।’’ एक मैले–कुचैले अधनंगे बच्चे ने दो रुपए कैमिस्ट के सामने रखते हुए कहा।
‘‘दो बूँद जिंदगी की! तुम्हें किसने बहका दिया बेटा , इस नाम की कोई दवाई नहीं है। पगला कहीं का। ले सँभाल, अपने दो रुपए और घर जाकर सही दवाई का नाम लिखवाकर लाओ।’’ कैमिस्ट ने हँसते हुए दो रुपए का सिक्का बच्चे की हथेली पर रखते हुए उत्तर दिया।
‘‘अंकल, यह वही दवाई है जिसे पीने के लिए अमित (अभिताभ बच्चन) अंकल हम बच्चों को समझाया करते हैं। आप टी।वी। नहीं देखते क्या? हमारे अपने छोटे से टी।वी। पर तो कल भी अमित अंकल दवा पीने के लिए कह रहे थे।’’ बच्चे ने भोलेपन से कहा।
‘‘अच्छा तो तुम पोलियो ड्रॉप्स के विषय में कह रहे हो। वह तो कल मुफ्त में मिल रही थी। तब तुम कहाँ गए थे?’’
‘‘कल इतवार था न अंकल। छुट्टी थी। मम्मी मुझे भी अपने साथ काम पर ले गई। वहाँ मजदूरी करती है न मम्मी। मैं दिनभर वहीं रहा। दिन छिपने पर हम घर लौटे। ऐसे में मुझे दो बूँद जिंदगी की पीने को नहीं मिली। अब यदि मैं ये दो बूँद नहीं पिऊँगा तो अमित अंकल मुझसे नाराज़ हो जाएँगे। रात वे टी।वी। पर खुद कह रहे थे कि वे उस बच्चे के साथ कभी बात नहीं करेंगे, जो दो बूँद जिदंगी की नहीं पिएगा! बच्चा रोने को हो आया था।’’
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