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लघुकथाएँ - देश - गीतिका वेदिका
जीवन साथी

“वीर!”
“परिवार माता पिता, भाभियों बहनों की बातें सुनते- सुनते चार साल हो गए और मै सबको खुश भी नही कर पाई। और आज भी मुझे प्यार और सहानुभूति देने के बजाए माँ ने मुझे चावल मे नमक कम होने के लिए खूब डाँटा। उनको एक बार भी नही लगा की नंदिना ने अभी एक माह पहले ही अपना दस दिन का बच्चा खोया है! उनको केवल खाने के स्वाद की पड़ी रहती है!
वीर सुनो, या सबको समझाओ कि मुझे इस दुख से उबर आने दें ,फिर मै सबकी जुबान का स्वाद का ख्याल रख लूँगी। केवल कुछ दिन तक मुझे मेरे मरे बच्चे का दुख मना लेने दो प्लीज”
एक साँस मे कह गई पीर नंदिना वीर की छाती पे सिर रखकर ज़ोर- ज़ोर से रोने लगी थी।
“अब तुम्हारे बच्चे के मरने से चावल में नमक कम होने का क्या ताल्लुक है नंदिना, तुम फिर से बेकार की बातों को दिल से लगा लेती हो। और ये मामला तुम सास-बहू का है, मै कुछ नही कर सकता इसमे”
उसे अपनी छाती से अलग करता हुआ बोला।
नंदिना का रोता हुआ चेहरा पूरी तरह से गुस्से मे भभकने लगा था। नमीदार आवाज़ खो कर आवेशित स्वर मे नंदिनी गुर्राई-
‘कैसे मर्द हो तुम?
वीर गुस्सा करने के बजाय धूर्त्तता से लिपटी विषैली मुस्कान फेरते हुए बोला- “तो फिर तू ये बता, ये मरा बच्चा कहाँ से लाई थी।”
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