सरकार और विद्रोहियों के बीच लड़ाई चल रही थी। विद्रोही आलाकमान की ओर से संदेशवाहक कूट भाषा में लिखी गुप्त संदेश लेकर विद्रोहियों के दूसरे ठिकाने के लिए रवाना हुआ।
भेदियों से खबर पाकर रास्ते में उसे सरकार की पुलिस ने घेर लिया।
संदेश को पुलिस के हाथ में पड़ने से बचाने के लिए संदेशवाहक ने जान की बाजी लगा दी। लेकिन अकेला आदमी एक पूरी कुमुक के आगे कब तक टिकता। पुलिस की गोलियों से छलनी होकर वह गिर पड़ा। बहादुर हरकारे की लाश से बरामद कागज पढ़ा गया। लिखा था–संदेश ले जाने वाला गद्दार है, उसे देखते ही खत्म कर दो।
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