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लघुकथाएँ - देश - खेमकरण सोमन
अंतिम चारा

क्षेत्र में इस बार भी भंयकर सूखा पड़ा था और इसी सूखे से निजात पाने के लिए आज एक आम सभा का आयोजन किया गया था।
‘साथियो’, गाँव के एक आदमी ने कहा, ‘सूखे के आगे सरकार, नदी, नहर, और झरना सब चीजें पहले ही नतमस्तक हो चुकी हैं। अब अंतिम चारा हमारे गाँव की महिलाएँ ही हैं। यदि वे चाहें तो हम सबकी जानें बचा सकती हैं।’
लोगों में जिज्ञासा बढ़ने लगी। सवाल पानी का था अर्थात जिंदगी का।
‘क्या मतलब’, तब एक बुजुर्ग व्यक्ति ने उपस्थित सभी लोगों के बीच से उठकर कहा, ‘आप आगे कहें जो भी कहना है?’
‘आगे यही कहना है कि’, पहले आदमी ने कहना शुरू किया, ‘यदि गाँव की महिलाएँ निर्वस्त्रा होकर अपने-अपने खेतों में हल चलायें तो, इंद्र देवता प्रसन्न होकर बारिश कर सकते हैं। पिछली बार भी यही बात उठी थी लेकिन महिलाएँ तो हल चलाने के लिए तैयार ही नहीं हुईं, तो स्थिति देख ही रहे हैं आप।’
सभा में भारी ख़ामोशी पसर गई। अंततः पेड़ बचाने की दुहाइयाँ, धरती बचाने की दुहाइयाँ, छोटे-छोटे बच्चों को बचाने की दुहाइयाँ, घर, मकान, जिंदगी और गाँव बचाने की दुहाइयाँ महिलाओं तक पहुँचाईं गयीं। फिर सभा द्वारा एक दिन निश्चित कर दिया गया कि अमुक दिन महिलाएँ निर्वस्त्रा होकर अपने-अपने खेतों में हल चलाएँगी। संकट सिर पर था अतः हल चलाने की तैयारियाँ तेज होने लगीं।
शाम को मोहन की बीबी, सरकार की बीबी से मिली और अचंभित होकर बोली, ‘दीदी! क्या सचमुच, इस तरह हल चलाने से बारिश हेागी और चारों तरफ हरियाली/खुशहाली छा जाएगी?’
‘ख़ाक’, सरकार की बीबी झल्ला पड़ी, ‘अब इन पुरुष जातों की क्या कहें! खुद ही सभा की और खुद ही सब कुछ तय कर दिया। यदि उन्हें बारिश की इतनी ही चिंता है तो वे सारे खुद ही नंगे होकर खेतों में हल क्यों नहीं चलाते? बताओ…।’
‘छी…छी…दीदी कैसी बातें करती हो!‘मोहन की नई नवेली बीबी शरमा गई।
‘बस्स…तुम तो इतने में ही शरमा गईं…’ सरकार की बीबी ने कहा-‘जो काम ये हमसे अगले इतवार करवाना चाह रहे हैं…बहन …वो काम तो हम महिलाएँ न जाने कितनी बार कर चुकी हैं ,तो बताओ…हम कितनी बार शरमाईं? …लेकिन हुआ क्या? दुख है कि हर कोई हम महिलाओं को नंगी ही देखना चाहता है। चाहे भगवान हो, बादल हो या इंसान हो।’
अब मोहन की दसवीं पास बीबी हतप्रभ थी।
दूसरे दिन ही पुरुषों की सभा में ये बातें पहुँचाई गईं कि महिलाएँ निर्वस्त्रा होकर हल नहीं चलायेंगी। पुरुषों की सभा अब चिंतित थी। बहुत बौखलाई हुई थी।
इसी बात को लेकर इधर पुरुषों की सभा चल रही थी और उधर महिलाओं की।
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