माइकेल कई बरस से बीमार था, साधारण -सी आर्थिक स्थिति:पत्नी,बच्चे,सारा भार। जितना सम्भव था, इलाज कराया गया ;किन्तु सब निष्फल। शय्या-कैद होकर रह गया। लेटे-लेटे जाने क्या सोचता रहता....अन्ततः परिवार के सदस्य भी अदृष्ट का संकेत समझकर, मौन रह,दुर्घटना की प्रतीक्षा करने लगे। एक बुजु़र्ग हितैषी ने सुझाया-‘अब हाथ में ज्यादा वक्त नहीं, फादर को बुला भेजो ताकि माइकेल ‘कनफै़स’ कर ले और शान्ति से जा सके।’ बेटा जाकर फ़ादर को बुला लाया। फ़ादर आकर सिरहाने बैठे, पवित्र जल छिड़का और ममताभरी आवाज़ में कहा-‘‘प्रभु ईशू तुम्हें अपनी बाँहों में ले लेंगे मेरे बच्चे! तुम्हें सब तकलीफ़ों से मुक्ति मिलेगी, बस एक बार सच्चे हृदय से सब कुछ कुबूल कर लो।’’
माइकेल ने मुश्किल से आँख खोलीं, बोला-
‘‘फादर मैंने कभी किसी को धोखा नहीं दिया।’’
फादर ने सान्त्वना दी- ‘‘यह तो अच्छी बात है, आगे बोलो!’’
माइकेल ने डूबती आवाज़ में कहा-‘‘फादर मैं झूठ,फरेब,छल-कपट से हमेशा बचता रहा।’’
फादर ने स्वयं को संयमित करते हुए कहा-‘‘यह तो ठीक है पर अब असली बात भी बोलो....माइकेल!’’
माइकेल की साँस फूल रही थी, सारी ताकत लगाकर उसने कहा.-‘‘फादर, दूसरे के दु:ख में दु:खी हुआ, परिवार की परवाह न कर दूसरो की मदद की...’’
अब फादर झल्ला उठे-‘‘माइकेल, कनफै़स करो....कनफै़स करो...गुनाह कुबूलो....वक्त बहुत कम है...।’’
उखड़ती साँसों के बीच कुछ टूटे-फूटे शब्द बाहर आए-‘’वही… तो कर… रहा हूँ… फ़ादर… !”
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