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लघुकथाएँ - देश - संतोष सुपेकर
पैरों की मुस्कान
‘‘मैं क्यों लगाऊँ उसे फोन?’’ वह बड़बड़ा रहा था, ‘‘मैं क्यों नीचे करूँ अपनी नाक? उसे करना हो तो करे वह फोन! मैं क्यों....’’
इतने सारे ‘‘क्यों सुनकर उसके दोनों पैर एक दूजे को देख मुस्कराए, ‘‘जब इंसान के चलने की इच्छा हो ,तब हम भी ऐसा ही दम्भ पालकर अड़ जाएँ तो?’’‘‘मैं क्यों लगाऊँ उसे फोन?’’ वह बड़बड़ा रहा था, ‘‘मैं क्यों नीचे करूँ अपनी नाक? उसे करना हो तो करे वह फोन! मैं क्यों....’’
इतने सारे ‘‘क्यों सुनकर उसके दोनों पैर एक दूजे को देख मुस्कराए, ‘‘जब इंसान के चलने की इच्छा हो ,तब हम भी ऐसा ही दम्भ पालकर अड़ जाएँ तो?’’
 
 
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