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लघुकथाएँ - देश - मनोज सेवलकर
बचपन
दादाजी अपने पोते के साथ बारिश में भीगते हुए, कागज की नावों को पानी में बहाकर आनंद ले रहे थे और उनकी पत्नी उन्हें बार–बार बारिश में भीगने से मना कर रही थी, परन्तु वे पत्नी की बातों को अनसुना कर पोते के साथ बारिश में भीगते हुए नाव बहाने का यह आनंद छोटे बच्चों की तरह ले रहे थे।
पोते ने दादाजी से प्रश्न किया–‘‘दादाजी, आपको दादी कब से घर के अंदर बुला रही है, आप अंदर क्यों नहीं जा रहे हो....?’’
उन्होंने पोते को समझाते हुए कहा–‘‘बेटा ये बारिश के बहते पानी संग कागज की नाव का खेल मेरे बचपन का सबसे मजेदार खेल रहा है। जब तक साँस है, इस बचपन के मजे को जाने नहीं दूँगा। तुम्हारी दादी तो बूढ़ी होगई है, उसे क्या मालूम बचपन का मजा....’’उन्होंने जोर से घर की ओर आवाज लगाई ‘‘नहीं आता जाओ, मेरी तुम से कुट्टी...।’’
दादा–पोता हँसते–हँसते फिर से अपने खेल में मग्न हो गए।

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