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लघुकथाएँ - देश - पूरन मुद्गल
निरन्तर इतिहास
‘‘यह मूर्ति चार हजार वर्ष पुरानी सभ्यता को समझने में सहायक सिद्ध होगी,’’ पुरातत्व अधिकारी ने कहा। गाँव के निकट प्राचीन टीले की खुदाई से प्राप्त उस मूर्ति को मैं ध्यान से देखने लगा। मैं जिनी सविच के रूप में अधिकारी के साथ राजधानी से आया था।
अधिकारी कह रहा था–‘‘इससे पता चलता है कि उस समय समाज तीन श्रेणीयों में बँटा हुआ था–राजा, मध्यवर्ग जिसमें कर्मचारी–व्यापारी–कृषक सम्मिलित थे ओर निम्नवर्ग में दास–दासियां और श्रमिक।’’
मूर्ति का कुछ भाग खंडित था; किन्तु आसन पर बैठा राजा, समीप खड़ा उच्च अधिकारी और राजा के चरण प्रक्षालित करती हुई दासी स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
मजदूरों की उपस्थिति की पड़ताल करने तथा खुदाई की प्रगति देखने अधिकारी और मैं प्राय: साइट पर जाया करते थे। उस दिन भी जब हम वहाँ पहुँचे तो खुदाई का काम जारी था। निकट के गाँवसे चालीस–पचास स्त्री–पुरूष मजदूर प्रतिदिन काम पर आते थे। वे विशेष औजारों से खुदाई करते। पुरानी ईंटें, बर्तन दुर्लध सिक्के,सुन्दर मूर्तियाँ टीले के गर्भ से प्राप्त हो रही थीं।
साइट के निकट मिट्टी उड़ने के कारण अधिकारी कुछ दूर खड़ा था। हाजिरी चैक करके मैं अधिकारी पास चला गया। तभी एक मजदूर लड़की काम छोड़कर अपने धूल भरे वस्त्रों को झाड़ती हुई अधिकारी के पास गई और बोली-‘’सरकार!मेरा बाप बीमार है, उसकी दवा–दारू करती है।’’ लड़की ने अपने चेहरे पर जमी हजारों वर्ष पुरानी धूल को दुपट्टे से पोंछने की चेष्टा की। अधिकारी के उपेक्षा भाव को देखकर वह हाथ जोड़ने लगी और अपनी विनती दोहराती हुई उसके पाँवों पर झुक गई। ऐसा लगा चार हजार वर्ष पुरानी खंडित–मूर्ति सजीव हो उठी है।

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