मैं अपने बेडरूम में लैपटाप लिए चैटिंग मे मशगूल था तभी एकाएक माँ ने शोर मचाना शुरू कर दिया- एकदम से बेहूदे हो चले हो क्या जरा सा तुम्हे अल्लाह का डर नही है पड़ोसी का जनाजा उठने को तैयार है और तुम कम्प्यूटर पर पिक्चर देख रहे हो।
मॉ खामोश होने का नाम ही नही ले रही थी, मैं फेसबुक लाग आउट कर लैपटाप आलमारी में रख जनाजे मे शामिल होने चल पड़ा। आयशा की लाश को कफ़न में लपेटा जा चुका था ।बस ताबूत में उसे सुलाकर कब्रिस्तान ले जाने की देरी थी।
एक दिन पहले तथा आएशा ठीक थी घर में खाना बनाकर सभी को खिलाया था, और फिर आखिर में बची हुई दाल- रोटी को अपने नन्हें हबीब को गोदी मे बैठा कर छोटे–छोटे निवाले उसके मुँह में डाले थे और फिर रोज की तरह आज भी बीड़ी बनाने मशगूल हो गई थी, तभी हबीब का अब्बा मुर्तजा बिना काम धन्धे से था दिन भर इधर उधर गप्पे लड़ाता था, और आएशा जो कि उसकी औरत थी कें हाथों बनी हुई बीड़ी की कमाई से अपने पेट भरता था। वह आज फिर आएशा से मार झगड़े पर उतारू हो गया था कि तुमने इतनी कम बीड़ी क्यों बनाई। बस आएशा ने पलटकर जवाब दे दिया था कि घर के काम- धंधे के बाद जितना वक्त मिलेगा उतना ही तो बनाऊँगी।
मुर्तज़ा आएशा को माँ बहन की तेज–तेज गालियाँ दे रहा था । गालियों की आवाज जहाँ तक जा रही थी, उन घरों तक के मर्द, औरत और बच्चे इस तमाशे को देखने के लिए जुट गए थे। वह उसे जानवरों की तरह लात -घूसों से मार रहा था। आएशा दर्द और दहशत से बेतहाशा चीख रही थी । वहीं बाहर जवान और बूढे तक दबे होठों से मुस्कुरा रहे थे। तभी किसी ने भीड़ से निकल आएशा को बचाने की कोशिश की मगर रहमत चाचा उसे पकड़कर एक कोने में ले गए और कान मे धीरे से फुसफुसाए। छुड़ाने की कोई जरूरत नही ऐसे मामले में बस दूर से मज़ा लेना चाहिए। तभी मुर्तजा ने आएशा पर लोहे का चिमटे चला दिया । सिर फट गया था ।आएशा फर्श पर गिर पड़ी थी। सिर और नाक से तेजी से खून बह रहा था।
आएशा अब खामोश हो चली थी, न चीख रही थी न चिल्ला रही थी। मुहल्ले को लोग धीरे–धीरे अपने घरों की ओर खिसकने लगे थे,क्योंकि आएशा की खामोशी उनके मजे को खत्म कर चुकी थी।
पड़ोस की बूढ़ी औरते हमदर्दी दिखाने के नाते आएशा के जख्मों पर देशी घी का लेप लगाकर गन्दे कपड़ो की पट्टी बाध आई थींथी। आएशा चारपाई पर दर्द से कराह रही थी। लोग अपने–अपने घरों में सो रहे थे।
अगली सुबह हो चुकी थी, लोग उठ गए थे पर आएशा नही उठी थी, वह मर चुकी थी। खून से सनी चादर पर उसका सिर पड़ा हुआ था, तभी मुहल्ले कि मस्जिद के लाउडस्पीकर से आवाज गूँजी –‘हज़रात !मुर्तज़ा की बीबी की जनाजे की नमाज जोहर बाद कब्रिस्तान में अदा की जाएगी ।आप हज़रात से गुजारिश है कि जनाजे में शामिल होकर सवाब के हकदार बनें।’
फिर लोग अपने- अपने घरों से निकलकर मुर्तज़ा की चौखट पर आ डटे थे। कल वे मजा लेने आए थे आज उसे दफन करने आए थे। जिस भीड़ ने कल आएशा के चीख दर्द और अपमान पर मजा जिया था आज उसी भीड़ से अल्लाह हू अकबर की सदा गूँजी थी।
लोग जनाजे को कंधों पर उठाकर कब्रिस्तान ले गए। जनाज की नमाज अदा की और फिर आएशा की लाश को कब्र में डाल दिया था। रहमत चाचा भी भीड़ को चीरते हुए आगे बड़े अल्लाह हू अकबर कहते हुए तीन बार मिट्टी डाली थी। फिर लोग अपने अपने घरों की आरे बढ़ने लगे। वे सभी खुश थ॥ उन्हें लग रहा था कि वे ढेर सारा सवाब लेकर लैट रहे हैं।
मॉ भी कब्रिस्तान की तरफ खुलने वाली खिड़की से झाँक कर देख रही थी ।मुझे देख उन्हे सुकून- सा महसूस हुआ कि उनका बेटा भी जनाजे की नमाज पढ़ और मिट्टी देकर आ रहा है ।इस तरह एक बार फिर उसने मुफ़्त में सवाब पा लिया होगा और वह मेरी औलाद है उसे जो सवाल मिलेगा उसमें से कुछ मुझे भी मिलेगा।
हालाँकि मॉं को इस बात की जरा भी परवाह नही कि कौन मरा कैसे मरा या फिर उसे बचाया भी जा सकता था, माँ तो बस मुहल्ले के लोगों की तरह मुफ़्त का सवाब पाकर खुश थी।
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