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लघुकथाएँ - देश - डॉ0 पूरन सिंह
बचा लो उसे
पूरे दिन डेलीगेट्स के साथ डील करते–करते थककर चूर हो गया था मैं । होटल के अपने कमरे में आया तो आते ही कम्पनी के मैनेजर को फोन कर दिया, ’' डील फ़ाइनल करो ! मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है! ’
ठीक बीस मिनट बाद एक बेहद सुन्दर सी लड़की मेरे कमरे में थी । उसने मेरी तरफ देखा और नज़रें झुका लीं। बिना कुछ कहे -सुने ही एक–एक कर काँपते हाथों से अपने कपड़े उतार कर बेड पर रखने लगी ।
मैं एकदम भौंचक ! अच्छा ये लोग इस हद तक उतर आए ! रिश्वत की पेशकश ठुकराने पर यहाँ तक पहुँच गए !
मुझे अच्छा नहीं लगा ।मैने नोटों की गड्डी निकाल कर टेबुल पर रख दी और कहा, ’पैसे ले लो , कपड़े पहनो और जाओ ।’ उसने कपड़े पहने और बिना पैसे लिये ही चल दी तो मैने उसे रोकते हुए पूछा ,’आपने पैसे नहीं लिये ।’
’आपने जो किया ही नहीं उसके पैसे कैसे.... ।’ फिर एक पल रुककर बोली, ’मैं बेईमान नही हूँ, लेकिन ..... । ’ और फिर चलने लगी थी ।
’लेकिन का क्या मतलब '- अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था।
’ मेरे भाई का आज आपरेशन है ....उसका मेरे सिवाय इस दुनिया में कोई नहीं है... उसके लिए पैसे चाहिए । आपरेशन न हुआ तो वह ..... । आपने .....ठीक.... नहीं.... कि.......या ....... ।’ उसकी पलकें भीग रही थीं ।
’ आपरेशन कौन से हॉस्पिटल में है ? क्या नाम है आपके भाई का ?’
’ लाइफ सेवर हॉस्पिटल में । मेरा भइया राकेश ......।’ उसने कहा और हवा के झोंके की तरह कमरे से बाहर निकल गई थी ।
बाद में, वह हॉस्पिटल पहुँची । डॉक्टर के पास गई और फूट-फूटकर रो पड़ी थी, ’डाक्टर साहब ! मैं पैसे का इंतजाम नहीं कर पाई.......डाक्टर, मेरा भाई.... मेरा भाई ।’
’ रोते नहीं बेटा .... आपके भाई का आपरेशन चल रहा है । पूरा पेमेंट तो आपके मित्र ने कर दिया ...... भई मान गए .......आज के जमाने में ऎसे लोग भी हैं..... आप बहुत खुशनसीब हैं जो आपको इतना अच्छा मित्र मिला । ’ डाक्टर तो न जाने और क्या –क्या कहता रहता कि उसने रोक दिया था , ’ कौन है वह ?’
’वहाँ. ......वहाँ बैठा है वह ।’ मेरी ओर इशारा करके डॉक्टर चला गया था ।
वह भागकर आपरेशन थियेटर के पास बने प्रतीक्षा- कक्ष में आ गई थी । उसने मुझे देखा और मुझसे लिपट गई थी । उसके होंठ कँपकँपाए थे, ’ आपने एक औरत को वेश्या बनने से बचा लिया ।......मैं आपका यह.........ए ह...सा.......न।’
मैने उसके होंठो पर हाथ रख दिया था ।
अपने – अपने पेशेण्ट के ठीक होने की आस लगाए बैठे लोग हम दोनों को देखे चले जा रहे थे ।
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