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लघुकथाएँ - देश - सुभाष लखेड़ा
खटमल
चालीस वर्ष पहले हम दोनों दिल्ली में आजू बाजू में किराये पर रहते थे। उसे पैसे वालों से सख्त नफ़रत थी।
उसका मानना था कि दूसरों का शोषण किये बिना कोई धनवान नहीं हो सकता है। यदा - कदा वह गुस्से में कहता था," ये सब साले खटमलों की औलाद हैं। गरीबों खून चूसकर पैसा बनाते हैं।"
खैर, फिर हम बिछुड़ गए।मैं मुंबई चला गया। चालीस वर्ष बाद दिल्ली में एक विवाह समारोह में मुलाकात हुई तो बातों ही बातों में उसने बताया कि उसके पास तीन फ्लैट और चार प्लॉट हैं; घर में तीन कारें हैं और ग्रामीण सेवा रूट पर उसकी 10 गाड़ियां हैं।
मैं उसकी तरक्की से खुश तो था पर न जाने क्यों मुझे उसके शरीर से खटमल की बू आने लगी थी !!


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