कॉलेज से लौटकर आज बहुत थकी हुई महसूस कर रही थी। चाय पीने के बाद भी थकान साथ छोड़ने को राज़ी न हुई। अनमने ढंग से मैं रात के भोजन की तैयारी में लग गई। साढ़े तीन साल की कांक्षी अपने सवालों और दिलचस्प विचारों के साथ मेरे आस–पास ही रहती। प्याज काटते हुए, मेरी बंद आँखों से आँसू निकल आए थे। नन्ही कांक्षी ने अपने किसी अनूठे सवाल को सुलझाने की फिक्र में मेरी तरफ देखा लेकिन सवाल को स्थगित करते हुए चिंतित होकर उसने कहा, ‘‘मम्मा, आँखें खोलो।’’
‘रुको बेटा, प्याज बहुत लग रहा है’, मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि अभी और कुछ मत पूछना। मेरी आँखें बंद ही थीं। आधे मिनट बाद उसने फिर कहा, ‘लो, आँखें धोलो।’ प्याज की जलन से तर आँखों से मैंने धीरे से उसकी तरफ देखने की कोशिश की। मेरी आँखे अब भी सजल थीं, पर प्याज की जलन अब नहीं थी। मेरी बिटिया अपनी नन्ही–नन्ही गीली हथेलियों को दोना बनाए मेरे पास खड़ी थी। मैंने देखा आँगन के नल से लेकर रसोई तक बूँदों में पानी बिखरा हुआ था और मैं एकदम तरोताजा और शान्त–‘मन मस्त हुआ तो क्यों बोले।’
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