माधव नागदा की लघुकथा ‘एहसास’ भी शिशु के सहज स्वच्छ निश्छल स्नेह से संबंध रखती है। शिशु सदैव उदार मन का होता है–प्रेम, सहानुभूति, सद्भाव से भरा। इसका एक और उदाहरण प्रस्तुत है इस रचना में। महेन्द्र सिंह ‘उत्साही’ और नागदा की लघुकथाओं में बहुत कुछ साम्य लक्षित है। दोनों रचनाएँ शिशुत्व का गौरव–गायन करती हैं। एक में क्रोधी पिता पराजित होता है अपने बाल–पुत्र की खूबसूरत खुशबूदार इंसानियत से, उसके देवसुलभ प्रेम–सहानुभूति के विस्तार से। दोनों रचनाएँ इंसानियत की खुशबू से सरोबार हैं, दोनों बच्चों के स्वच्छ निश्छल प्रेम की विजयगाथा, प्रेम की सर्वजयिता को उद्भासित करती हुई। ऐसी लघुकथाएँ निश्चित रूप से इस विधा का गौरव वर्णन करती हैं और पाठकों में यह आश्वस्ति जगाती हैं कि लघुकथा विधा में श्रेष्ठ रचना संभव है यानी इस विधा में भी शाश्वत विषयवस्तु का निर्वाह बड़े कलात्मक कौशल व सृजनात्मक शिल्प के साथ किया जा सकता है बशर्ते कि रचनाकार की अन्तर्सत्ता उस विषय वस्तु की मूल संवेदना–धारा में काफी देर तक डूबी हो, उसकी सूक्ष्म अन्तदृर्ष्टि काफी विकसित हो तथा भाषा की संस्कार–चेतना उसके प्राणों में रमण करती हो। प्रथम कोटि।