मैं एक नौकर हूँ,लेकिन मेरे पास करने को कोई काम नहीं है, मैं दब्बू हूँ और अपने आपको आगे लाने के लिए जोर नहीं मारता, लेकिन यह मेरी बेकारी का केवल एक कारण है यह भी संभव है कि इसका मेरी बेकारी से कोई लेना–देना ही न हो, बहरहाल ,मुख्य कारण यह है कि मुझे खिदमत के लिए बुलाया ही नहीं जाता, दूसरों को बुलाया गया है फिर भी उन्होंने मुझसे अधिक कोशिश नहीं की है, दरअसल शायद उन्हें बुलाए जाने की इच्छा भी महसूस नहीं हुई है, जबकि मुझे,कम से कम कुछेक बार तो, यह बहुत तेज महसूस हुई है।
इसीलिए मैं नौकरों के कमरे में गुदड़ी पर पड़ा रहता हूँ, छत की कडि़यों को ताकता हूँ, सो जाता हूँ,जागता हूँऔर फिर तुरंत ही फिर से सो जाता हूँ,कभी–कभी मैं शराबखाने की ओर निकल जाता हूँ जहां खट्टी बियर मिलती है,कभी–कभी तो मैंने चिढ़कर गिलास उंडेल दिया है, लेकिन फिर मैं वहां फिर पहुँच जाता हूँ,मुझे वहाँ बैठना अच्छा लगता है क्योंकि बंद छोटी खिड़की के पीछे से, देख लिए जाने की संभावना से मुक्त,मैं उस पार अपने मकान की खिड़कियों को देख सकता हूँ। यह बात नहीं कि वहाँ बहुत कुछ देखने को मिलता है, जहाँ तक मेरी जानकारी है केवल गलियारों की खिड़कियाँ सड़क की ओर खुलती हैं, और यही नहीं मुख्य रिहायश की ओरजाने वाले गलियारों की खिड़कियाँ भी सड़क की ओर नहीं खुलतीं। संभव है मैं गलती पर हूँ, लेकिन किसी ने, बिना मेरे पूछे,एक बार ऐसा ही बताया था, और इस मकान के सामने वाले हिस्से को देखने से इस बात की पुष्टि होती है। बहुत कम मौकों पर ही ये खिड़कियाँ खोली जाती हैं, और जब भी खुलती हैं इन्हें खोलने वाला एक नौकर हेाता है जो जंगले पर झुककर थोड़ी देर को नीचे झाँक भी सकता है। इसलिए यह बात सामने आती है कि ये वे गलियारे हैं जहां उसे हैरत में नहीं डाला जा सकता,सच बात तो यह है कि मेरा इन नौकरों से कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं है; जो ऊपरी मंजिल पर स्थायी नौकरी में हैं वे कहीं और सोते हैं, मेरे कमरे में नहीं।
एक बार जब मैं शराबखनेमें पहुँचा तो, एक ग्राहक उस जगह बैठा हुआ था जहाँ से मैं जायजा लिया करता था। मुझे पास उसे देखने की हिम्मत नहीं हुई और मैं दरवाजे में मुड़कर जाने ही वाला था लेकिन उस ग्राहक ने मुझे बुला लिया, और यह पता चला कि वह भी एक नौकर था जिसे एक बार पहले मैं कहीं देख चुका था, लेकिन मैंने उससे बात नहीं की थी। ‘‘तुम भागना चाहते हो? बैठ जाओ और कुछ पियो। पैसे मैं दूँगा,’’ इसलिए मैं बैठ गया। उसने मुझसे कई सवाल किए, लेकिन मैं जवाब नहीं दे पाया, दरअसल तो मुझे उसके सवाल ही समझ नहीं आए। इसलिए मैंने कहा: ‘‘शायद अब आपको इस बात का अफसोस हो रहा होगा कि आपने मुझे क्यों बुलाया, इसलिए मेरा चलना ठीक रहेगा,’’ और मैं उठने लगा। लेकिन उसने मेज के ऊपर से अपना हाथ बढ़ाया और मुझे बिठा दिया। ‘‘रुको,’’ वह बोला, ‘‘यह तो केवल इम्तिहान था। जो सवालों का जवाब नहीं देता समझो वह इम्तिहान में कामयाब हो गया।’’
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